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Articles by जेनिफ़र बेन्सन शुल्ट्ज

सुरक्षा की और खींचना

एक छोटी बच्ची एक छोटे उथले नाले में उतरी जिस समय उसके पिता उसे देख रहे थे l उसके रबर के जूते घुटनों तक थे l जब वह नाले के बहाव की ओर गयी, जल गहरा हो गया जब तक कि वह उसके जूते के ऊपर तक नहीं पहुँच गया l जब वह अगला कदम बढ़ा न सकी, वह चिल्लायी, “डैडी, मैं फंस गई हूं!” तीन डग पर उसके पिता उसके पास थे, और उसे खींचकर घासदार किनारे पर ला रहे थे l वह हंसी जब जूतों को झटकते समय पानी भूमि पर गिरने लगा l 

जब परमेश्वर ने भजनकार दाऊद को उसके शत्रुओं से बचाया, वह एक क्षण लेकर बैठने, “अपने जूते उतारने” और चैन को अपने प्राण के भीतर बहने दिया। उसने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए एक गीत लिखा, “मैं यहोवा को जो स्तुति के योग्य है पुकारूंगा, और अपने शत्रुओं से बचाया जाऊंगा,” उसने कहा (2 शमुएल 22:4)। उसने परमेश्वर की स्तुति अपनी चट्टान, गढ़, ढाल, और शरणस्थान के रूप में किया (पद 2-3), और फिर परमेश्वर के प्रतिउत्तर को काव्य रूप में व्यक्त करता चला : पृथ्वी हिल गयी और डोल उठी l परमेश्वर स्वर्ग को झुकाकर नीचे उतर आया l उसके सम्मुख के तेज से आग के कोयले दहक उठे l यहोवा गरजा, और मुझे गहरे जल में से खींचकर बाहर निकाला” (पद 8,10,13-15,17) l

हो सकता है कि आज आप अपने चारों तरफ विरोध का अहसास कर रहे हैं। हो सकता है कि आप पाप में फंसे हैं जो आपको आत्मिक रूप से आगे बढ़ना कठिन बना रहा है l याद करें कि कैसे अतीत में परमेश्वर ने आपकी मदद की है, और तब उसकी प्रशंसा करते हुए उससे वही काम दुबारा करने के लिए कहे! आपको अपने राज्य में लाकर बचाने के लिए उसको विशिष्ट रूप से धन्यवाद दें (कुलुस्सियों 1:13)।

एक मित्रतापूर्ण बातचीत

कैथरीन और मैं हाई स्कूल में अच्छे दोस्त थे l जब हम फोन पर बात नहीं कर रहे होते, हम अपने अगले विशेष मौके की योजना बनाने के लिए कक्षा में नोट्स पास करते थे । कभी-कभी अपने सप्ताहांत एक साथ बिताते और स्कूल परियोजनाएँ एक साथ मिलकर करते थे।

एक रविवार की दोपहर, मैं कैथरीन के बारे में सोचने लगी । मेरे पास्टर ने उस सुबह अनन्त जीवन पाने के बारे में बताया था, और मैं जानती थी कि मेरी सहेली बाइबल की शिक्षाओं पर उस तरह विश्वास नहीं करती जिस तरह मैं करती थी। मुझे इस बात का बोझ महसूस हुआ कि मैं उससे बात करुँ और उसे यह समझाऊँ कि कैसे वो यीशु के साथ एक व्यक्तिगत रिश्ता बना सकती है। हालाँकि, मुझे झिझक हुई, क्योंकि मुझे डर था कि वह मेरी बात को अस्वीकार कर देगी और मुझसे दूर हो जाएगी।

मुझे लगता है कि इस डर के कारण हममें से कई चुप रह जाते है। यहाँ तक कि प्रेरित पौलुस को भी लोगों से प्रार्थना करने के लिए कहना पड़ा कि वह "साहस के साथ सुसमाचार का भेद बता सके" (इफिसियों 6:19 )। सुसमाचार को बाँटने में कोई जोखिम नहीं है, तौभी पौलुस ने कहा कि वह "एक राजदूत" है─ऐसा व्यक्ति जो परमेश्वर की ओर से बोलता है (पद 20)। हम भी हैं। अगर लोग हमारे संदेश को अस्वीकार करते हैं, तो वे संदेश भेजने वाले को भी अस्वीकार करते हैं।

तो क्या हमें बोलने के लिए मजबूर करती है? हम लोगों की परवाह करते हैं, जैसे परमेश्वर करता है (2 पतरस 3:9) । यही कारण था जिसने आखिरकार मुझे कैथरीन को फोन करने के लिए मजबूर किया । आश्चर्यजनक रूप से, उसने मेरा फोन बंद नहीं किया l उसने सुना। उसने सवाल पूछे। उसने यीशु से अपने पापों की क्षमा माँगी और उसके लिए जीने का फैसला किया । यह जोख़िम इनाम पाने के लिए योग्य था ।

सफलता और त्याग

एक ग्रीष्मकालीन अध्ययन कार्यक्रम के दौरान, मेरे बेटे ने एक लड़के के बारे में एक किताब पढ़ी जो स्विट्जरलैंड में एक पहाड़ पर चढ़ना चाहता था। इस लक्ष्य के लिए अभ्यास करने में उनका अधिकांश समय व्यतीत होता था। जब वह अंत में शिखर सम्मेलन के लिए रवाना हुआ, तो योजना के अनुसार चीजें नहीं हुईं। ढलान के ऊपर, एक टीम का साथी बीमार हो गया और लड़के ने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के बजाय मदद करने के लिए पीछे रहने का फैसला किया।

कक्षा में, मेरे बेटे के शिक्षक ने पूछा, "क्या मुख्य पात्र असफल रहा क्योंकि वह पहाड़ पर नहीं चढ़ पाया?" एक छात्र ने कहा, "हां, क्योंकि फेल होना उसके डीएनए में था।" लेकिन एक और बच्चा इससे सहमत नहीं था। उसने तर्क दिया कि लड़का असफल नहीं था, क्योंकि उसने किसी और की मदद करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण छोड़ दिया।

जब हम अपनी योजनाओं को अलग रखते हैं और इसके बजाय दूसरों की परवाह करते हैं, तो हम यीशु की तरह काम कर रहे होते हैं। यीशु ने यात्रा करने और परमेश्वर के सत्य को साझा करने के लिए एक घर, विश्वसनीय आय, और सामाजिक स्वीकृति का त्याग किया। अंततः, उसने हमें पाप से मुक्त करने और हमें परमेश्वर का प्रेम दिखाने के लिए अपना जीवन दे दिया (1 यूहन्ना 3:16)।

सांसारिक सफलता परमेश्वर की दृष्टि में सफलता से बहुत अलग है। वह उस करुणा को महत्व देता है जो हमें वंचितों और आहत लोगों को बचाने के लिए प्रेरित करती है (v17)। वह उन फैसलों को मंजूरी देता है जो लोगों की रक्षा करते हैं। परमेश्वर की मदद से, हम अपने मूल्यों को उनके साथ संरेखित कर सकते हैं और खुद को उन्हें और दूसरों को प्यार करने के लिए समर्पित कर सकते हैं, जो कि सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

मैं क्या कहूँ?

जब मैं एक इस्तेमाल की हुई किताबों की दुकान पर किताबों के एक बॉक्स में खोजने के लिए रुका, तो दुकान का मालिक दिखाई दिया। जब हम उपलब्ध शीर्षकों के बारे में बात कर रहे थे, मुझे आश्चर्य हुआ कि क्या वह विश्वास में दिलचस्पी ले सकता है। मैंने मार्गदर्शन के लिए चुपचाप प्रार्थना की। एक मसीही लेखक की जीवन कथा से जानकारी दिमाग में आई, और हम उन मामलों पर चर्चा करने लगे जो परमेश्वर की ओर इशारा करते थे। अंत में, मैं आभारी था कि एक त्वरित प्रार्थना ने हमारी बातचीत को आध्यात्मिक मामलों में बदल दिया।

नहेम्याह फारस में राजा अर्तक्षत्र के साथ बातचीत में एक महत्वपूर्ण क्षण से पहले प्रार्थना करने के लिए रुका। राजा ने पूछा था कि वह नहेम्याह की कैसे मदद कर सकता है, जो यरूशलेम के विनाश से व्याकुल था। नहेम्याह राजा का सेवक था और इसलिए कृपादृष्टि माँगने की स्थिति में नहीं था, परन्तु उसे एक की आवश्यकता थी—एक बड़ी कृपादृष्टि की। वह यरूशलेम को पुनर्स्थापित करना चाहता था। इसलिए, उसने अपनी नौकरी छोड़ने के लिए कहने से पहले "स्वर्ग के परमेश्वर से प्रार्थना की" ताकि वह शहर को फिर से स्थापित कर सके (नहेम्याह 2:4-5)। राजा ने सहमति व्यक्त की और यहां तक ​​कि नहेम्याह की यात्रा व्यवस्था करने और परियोजना के लिए लकड़ी खरीदने में मदद करने के लिए सहमत हो गया।

बाइबल हमें "हर समय और हर प्रकार से . . . विनती करते” रहने के लिए प्रोत्साहित करती है (इफिसियों 6:18)। इसमें ऐसे क्षण शामिल हैं जब हमें साहस, आत्म-नियंत्रण या संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है। बोलने से पहले प्रार्थना करने से हमें परमेश्वर को अपने दृष्टिकोण और अपने शब्दों पर नियंत्रण करने में मदद मिलती है।

वह आज आपके शब्दों को कैसे निर्देशित करना चाहेगा? उससे पूछें और पता करें!

महानतम शिक्षक

“मुझे समझ में नहीं आता है!” मेरी बेटी ने डेस्क पर अपनी पेंसिल को पटक दिया l वह गणित का एक गृहकार्य हल कर रही थी, और मैंने होमस्कूलिंग माँम/टीचर के रूप में अपना “काम” शुरू किया ही था l हम समस्या में थे l मैंने जो दशमलव को अंश में बदलना पैंतीस साल पहले सीखा था उसे याद नहीं कर पा रही थी l मैं उसे कुछ नहीं सीखा पा रही थी जो मैं पहले से नहीं जानती थी, इसलिए हमने एक ऑनलाइन टीचर को इस युक्ति को समझाते हुए देखा l 

मानव रूप में, हम उन चीजों के साथ कई बार संघर्ष करते हैं जिन्हें हम जानते या समझते नहीं हैं l लेकिन परमेश्वर नहीं l वह सर्वज्ञ है──सर्वज्ञानी है l यशायाह ने लिखा, “किसने यहोवा . . . [का] मत्री होकर उसको ज्ञान सिखाया है? उसने किससे सम्मति ली और किसने उसे समझाकर न्याय का पथ बता दिया और ज्ञान सिखाकर बुद्धि का मार्ग जता दिया है?” (यशायाह 40:13-14) l उत्तर? कोई नहीं!

मनुष्य के पास अक्ल/समझ है क्योंकि परमेश्वर ने हमें अपने स्वरुप में बनाया है l इसके बावजूद, हमारी समझ केवल उसकी एक छाप है l हमारा ज्ञान सीमित है, लेकिन परमेश्वर अनंत अतीत से अनंत भविष्य तक सब कुछ जानता है (भजन 147:5) l आज हमारा ज्ञान तकनीक की मदद से बढ़ रहा है, लेकिन फिर भी हम गलती करते हैं l यीशु, हालाँकि, “तुरंत, साथ-साथ, सुविस्तृत रूप से और सच्चाई से सब कुछ” जानता है जैसा कि धर्मविज्ञानी कहते हैं l 

चाहे मनुष्य जितना भी ज्ञान में विकास कर ले, हम कभी भी मसीह के सर्वज्ञानी दर्जा को पार नहीं कह सकते हैं l हमें हमारी समझ को आशीष देने और हमें यह सिखाने के लिए कि अच्छा और सच्चा क्या है उसकी हमेशा ज़रूरत पड़ेगी l  

आनंदपूर्ण सीखना

भारत के मैसूर शहर में, ट्रेन के दो डिब्बों को नया स्वरूप देकर, और दोनों ओर से जोड़कर एक स्कूल बनाया गया है l स्थानीय शिक्षकों ने दक्षिण पश्चिम रेलवे कम्पनी के साथ एक टीम बनाकर खारिज डिब्बों को ख़रीदा और उन्हें नया स्वरुप दिया l ये इकाइयाँ वास्तव में धातु के बड़े बक्से थे, और कर्मियों द्वारा सीढ़ियाँ, फंखें, बत्तियां, और डेस्क लगाए जाने तक अनुपयोगी थे l कर्मियों ने दीवालों को भी पैंट किया और अन्दर और बाहर रंगीन भित्ति-चित्र बनाए l वर्तमान में, आश्चर्यजनक रूपांतरण के कारण, यहाँ पर साठ विद्यार्थी कक्षाओं में उपस्थित होते हैं l 

कुछ और अधिक आश्चर्यजनक होता है जब हम प्रेरित पौलुस का निर्देश “तुम्हारे मन के नए हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए” का अनुसरण करते हैं ((रोमियों 12:2) l जब हम पवित्र आत्मा को हमें संसार और उसके तरीकों से अलग करने की अनुमति देते हैं, तो हमारे विचार और दृष्टिकोण बदलने लगते हैं l हम अधिक प्रेममय, अधिक आशान्वित और आंतरिक शांति से परिपूर्ण हो जाते हैं (8:6) l  

कुछ और भी होता है l यद्यपि यह रूपांतरण प्रक्रिया अविरत है, और अक्सर रेल के सफ़र से अधिक ठहराव एवं आरम्भ होते हैं, यह प्रक्रिया हमें समझने में मदद करती है कि परमेश्वर हमारे जीवनों के लिए क्या चाहता है l यह हमें एक ऐसे स्थान पर ले जाता है जहाँ हम “परमेश्वर की . . . इच्छा अनुभव” करते हैं (12:2) l उसकी इच्छा में बारीकियां हो सकती हैं या नहीं हो सकती हैं, लेकिन इसमें हमेशा खुद को उसके चरित्र और संसार में उसके काम के साथ संरेखित करना शामिल है l 

भारत में रूपांतरित स्कूल का नाम, नली कली(Nali Kali) का मतलब हिंदी में “आनंदपूर्ण सीखना” है l किस तरह परमेश्वर की रूपांतरित करनेवाली सामर्थ्य आपको उसकी इच्छा में आनंदपूर्ण सीखने की ओर अगुवाई करती है?

परमेश्वर को आदर देने का चुनाव

मुझे ऑस्ट्रेलिया की एक असाधारण शल्यचिकित्सक कैथरीन हैमलिन की निधन सूचना पढ़ने के बाद उनके बारे में पता चला l इथियोपिया में, कैथरीन और उनके पति ने विश्व के एकमात्र हॉस्पिटल की स्थापना की जो शरीर की विनाशकारी और प्रसूति नासूर(obstetric fistula) के भावनात्मक आघात का इलाज करने के लिए समर्पित किया गया जो विकासशील संसार में एक सामान्य क्षति के रूप में बच्चे के जन्म के समय हो सकता है l कैथरीन को 60,000 से ज्यादा महिलाओं के इलाज की देखरेख का श्रेय दिया गया ।

हैमलिन बानवे की उम्र तक हॉस्पिटल में काम करती रही और अपने हर दिन की शुरुआत एक कप चाय और बाइबल अध्ययन से करती हुयी, जिज्ञासा से प्रश्न पूछनेवालों से कहा कि वह यीशु में एक साधारण विश्वासी है जो केवल वही कार्य कर रही थी जो परमेश्वर ने उसे दिया था l  

मैं उनके असाधारण जीवन के बारे में जानकर आभारी थी क्योंकि उन्होंने मेरे लिए पवित्रशास्त्र के प्रोत्साहन को हमारे जीवन को इस तरह जीने के लिए उदाहरण प्रस्तुत किया,  यहाँ तक कि जो परमेश्वर को सक्रिय रूप से अस्वीकार करते हैं “वे भी [हमारे] भले कामों को देखकर . . . परमेश्वर की महिमा करें” (1 पतरस 2:12) l 

परमेश्वर के आत्मा की सामर्थ्य जो हमें आत्मिक अंधकार से निकालकर उसके साथ एक रिश्ते में बुलाया है (पद. 9) हमारे काम या हमारी सेवा क्षेत्रों को विश्वास की गवाही में परिवर्तित कर सकता है । परमेश्वर ने जो भी जुनून या कौशल हमें उपहार के तौर पर दिए हैं, हम उन सभी को करने में अतिरिक्त सार्थकता और उद्देश्य के साथ इस प्रकार करें जिसके पास लोगों को उसकी ओर इंगित करने की ताकत हो l 

हमारी समस्यायों से बड़ा

आप क्या सोचते हैं जब डायनासोर जीवित थे तब कैसे दिखते थे? बड़े दांत? छिलकेदार त्वचा? लम्बी पूँछ? एक कलाकार इन विलुप्त जीवों को बड़े-बड़े भित्ती चित्रों में फिर से बनाता है l उसकी एक चित्रावली 20 फीट से अधिक ऊँची और 60 फीट लम्बी है l  इसके आकार के कारण, इसे खण्डों में स्थापित करने के लिए विशेषज्ञों के एक दल की आवश्यकता थी जहाँ यह प्राकृतिक इतिहास के सैम नोबल ओक्लाहोमा संग्रहालय में है l 

डायनासोर द्वारा बौना महसूस किये बिना इस भित्ति-चित्र के सामने खड़ा होना कठिन होगा l जब मैं उस शक्तिशाली जानवर “जलगज” के बारे में परमेश्वर का वर्णन पढ़ता हूँ मुझे उसी तरह का अनुभव होता है (अय्यूब 40:15) । यह बड़ा जानवर बैल के समान घास चबाता था और उसकी पूँछ पेड़ के तने के आकार की थी l उसकी हड्डियाँ लोहे के पाइप की तरह थीं l  वह पहाड़ों पर चरता था, और कभी-कभी स्थानीय कीचड़ के गड्ढों में आराम करने के लिए ठहरता था l जब बाढ़ का पानी बढ़ता था, जलगज ने कभी भी चिंता या असहमति नहीं दर्शायी l 

उसके सिरजनहार के सिवाय──कोई भी इस अविश्वसनीय प्राणी को वश में नहीं कर सकता था (पद.19)। परमेश्वर ने अय्यूब को इस सच्चाई की याद ऐसे समय में दिलायी जब उसकी समस्याओं ने उसके जीवन पर अशुभ छाया डाली l दुःख, विस्मय और कुंठा ने उसके दर्शन के क्षेत्र को भर दिया जब तक उसने परमेश्वर से प्रश्न करना शुरू नहीं किया l किन्तु परमेश्वर के प्रत्युत्तर ने अय्यूब को चीजों के वास्तविक आकार को देखने में मदद की l  परमेश्वर अपने मुद्दों से बड़ा था और उन समस्याओं को नियंत्रित करने के लिए काफी शक्तिशाली था जिनका समाधान अय्यूब स्वयं नहीं कर सकता था l अंत में, अय्यूब ने स्वीकारा, ‘‘मैं जानता हूँ कि तू सब कुछ कर सकता है’’ (42:2) l 

पुनः फलो-फूलो

पर्याप्त धूप और पानी मिलने के कारण,  जंगली फूल कैलिफोर्निया के एंटीलोप घाटी और फिगेरोआ पर्वत के क्षेत्रों को ढंके हुए हैं l लेकिन जब सूखे की मार पड़ती है तो क्या होता है? वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि कुछ जंगली फूल अपने ढेर सारे बीज मिट्टी के नीचे संचय कर लेते हैं और उन्हें खिलने की अनुमति देने के बजाय भूमि में नीचे पहुँचा देते हैं l सूखे के बाद,  पौधे सुरक्षित बीजों का उपयोग फिर से फलने-फूलने के लिए करते हैं l

प्राचीन इस्राएली कठोर परिस्थितियों के बावजूद मिस्र की भूमि में बढ़ते और फैलते गए l दासों के मालिकों ने उन्हें खेतों में काम करने और ईंटें बनाने के लिए मजबूर किया l क्रूर निरीक्षक उनसे फिरौन के लिए पूरे शहर का निर्माण करने की अपेक्षा करते थे l मिस्र के राजा ने उनकी संख्या कम करने के लिए शिशु हत्या(infanticide) का उपयोग करने की कोशिश की l हालाँकि, कि परमेश्वर ने उन्हें जीवित रखा, “ज्यों-ज्यों वे उनको दुःख देते गए, त्यों-त्यों वे बढ़ते और फैलते चले गए” (निर्गमन 1:12) l कई बाइबल विद्वानों का अनुमान है कि इस्राएल के पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की आबादी मिस्र में उनके समय के दौरान बढ़कर बीस लाख (या अधिक) हो गई l

परमेश्वर, जिसने अपने लोगों को तब सुरक्षित रखा था,  आज भी हमें संभाले हुए है l वह किसी भी वातावरण में हमारी मदद कर सकता है l हम एक और मौसम के दौरान टिके रहने की  चिंता कर सकते हैं l लेकिन बाइबल हमें आश्वास्त करती है कि परमेश्वर,  जो “मैदान के घास को, जो आज है और कल भाड़ में झोंकी जाएगी, ऐसा वस्त्र पहिनाता है” हमारी आवश्यकता को भी पूरी करेगा (मत्ती 6:30) l